मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

मां को बचाने के लिए उठ रहे हाथ

नदी के किनारे सभ्यता बसती है। आज हमारी अपनी नदी मां हमसे पूछ रही है क्या तुम में थोड़ी सभ्यता बाकी है? पत्रिका की अपील मां को बचा लो, पढऩे के बाद शहर के कई संवेदनशील व सुधी पाठकों ने इस महाअभियान के साथ जुडऩे की इच्छा जताई। यह छोटी सी चिंगारी कल मशाल बनकर शहर के विकास का मार्ग प्रशस्त करे, यह आरजू सिर्फ हमारी नहीं, इस शहर के प्रबुद्धजन की भी है।

नामुमकिन कुछ नहीं
इस दुनिया में असंभव कुछ नहीं है बशर्ते इरादा पक्का हो। हम इन दिनों इंदौर शहर का बाहरी हिस्सा खूबसूरत बनाने में जुटे हैं और गंदगी को शहर के बीच में इकट्ठा कर रहे हैं। खान के शुद्धीकरण के लिए नदी के एक-एक हिस्से पर काम करना शुरू करें। एक हिस्सा साफ होता देख, बाकियों को प्रेरणा मिलेगी। जिम्मेदारों को इस काम में फंड का रोना नहीं रोना चाहिए क्योंकि मजबूत आर्थिक स्थिति वाली कंपनियों को जब मुफ्त में जमीन दी जा सकती है तो शहर की जीवनरेखा के लिए भी खर्च
किया जा सकता है।
चिन्मय मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता

शहर का पुनर्जन्म होगा
मुझे बहुत हैरानी होती है कि जब बात शहर के विकास और तरक्की की होती है तो हम सब आंख, कान और मुंह बंद क्यों कर लेते हैं। देखते ही देखते हमारी आंखों के सामने ही नदी नाले में बदल जाती है। ऐतिहासिक धरोहरें यूं ही लापरवाही की भेंच चढ़कर मिट जाती हैं। सरकारी संपत्ति निजी हाथों में चली जाती है और हम सिवाए चुप रहने के कुछ और नहीं कर पाते हैं। यदि हमने ईमानदारी से कोशिश की तो केवल खान नदी ही पुनर्जीवित नहीं होगी, शहर का पुनर्जन्म होगा। यहां आने वाले लोग एक बार फिर इंदौर का नाम गर्व से लेंगे।
सुशील गोयल, रंगकर्मी

हमें नाला नहीं नदी चाहिए
हमने बचपन से इसे नदी नहीं नाले के रूप में देखा लेकिन भविष्य में हमें नाला नहीं नदी चाहिए। क्यों हमारे शहर के बीचोबीच से गंदा पानी बहे? क्यों न एक साफ-सुथरी नदी बहे। जनसहयोग से अगर इस नदी को सुधारने की कोई भी योजना आएगी तो यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राएं इस काम में पूरे उत्साह व जोश के साथ मदद करने आएंगे।
वर्षा शर्मा, छात्रसंघ अध्यक्ष


प्राथमिकता यही हो
खान नदी हमारी जीवनरेखा है। हम अभागे हैं जो जीवनरेखा को ही दूषित कर रखा है। खान का शुद्धीकरण हमारे शहर की प्राथमिकता होना चाहिए। जब यह साफ रहेगी तो पूरा इंदौर साफ दिखाई देगा। आप सोचिए क्या शान होगी इंदौर की, एक ओर राजबाड़ा, दूसरी ओर शहर के बीचोबीच से बहती नदी। खान को संवारने की इस मुहिम में हम हर सहयोग देंगे।
कीर्ति पंड्या, राष्ट्रीय महासचिव, दिगंबर जैन सोशल ग्रुप फेडरेशन

नदी को नदी बनाना होगा

जिसे आज आप लोग नाला कहकर मुंह सिकोड़ते हो, आंखें फेर लेते हो, हम उसमें कभी नहाते थे। मैं मोती तबेला में रहता था और हरसिद्धि के घाटों पर बचपन में खूब तैरा हूं। दोस्त भी हमेशा साथ रहते थे। इस नदी को जिंदा करना आज हमारी अनिवार्य जरूरत बन चुकी है। अगर हम चाहते हैं कि शहर का पर्यावरण अच्छा रहे, हमारे बोरिंग, ट्यूबवेल में पानी का स्तर बना रहे तो हमें नदी को नदी बनाना होगा।
नूर मोहम्मद कुरैशी, सचिव इंडियन वॉटर वक्र्स

लौटेगी शहर की शान

खान नदी के पुनरुद्धार के साथ शहर की शान भी लौटेगी। कृष्णपुरा की भव्य छतरियां, घाट के किनारे बसे मंदिर सबकी रौनक खान नदी की शान के साथ चली गई। आज लोग कहते हैं कि मेहमानों को इंदौर शहर में क्या दिखाने ले जाएं? कल यदि खान नदी संवर गई तो इंदौर प्रदेश का ही नहीं यह देश का सबसे खूबसूरत शहर होगा। हम लोगों को सबकुछ छोड़कर इस नदी के पुनरुद्धार पर ध्यान देना चाहिए, तभी बदलाव होगा।
डॉ. गणेश मतकर, इतिहासविद्

नाम भी बदनाम भी
खान संवर गई तो इंदौर का नाम होगा, नहीं संवरी तो हम बदनाम होंगे। आप ही सोचिए जब अन्य शहर के लोग इंदौर आएंगे और शहर के बीचोबीच खान को देखकर क्या सोचते होंगे, यही कि कितना गंदा शहर है। शहर के बीचोबीच से नाला बहता है। इसमें बेचारी नदी का क्या कसूर, कसूर तो हमारा है, जो नदी को नाला बना दिया। हम इसे जिंदा कर पाए तो शहर में नायाब उदाहरण कायम होगा।
मुकुंद कुलकर्णी, सदस्य डेवलपमेंट फाउंडेशन


हर वार्ड में हो नदी संरक्षण समिति
शशिकांत अवस्थी
क्षिप्रा बचाओ अभियान

न नदी के पुनर्जीवन व संरक्षण से इंदौर का नहीं उज्जैन का भाग्य भी संवरेगा। हम 2004 से क्षिप्रा नदी के संरक्षण पर काम कर रहे हैं। इन आठ सालों के अनुभव के आधार पर विश्वास से कह सकते हैं खान के पुनर्जीवन से क्षिप्रा की समृद्धि भी लौट आएगी। उद्गम के बाद अलग-अलग प्रवाहों से गुजरते हुए क्षिप्रा उज्जैन पहुंचती है, जहां त्रिवेणी में खान नदी क्षिप्रा में मिलती है। त्रिवेणी के पहले की क्षिप्रा और त्रिवेणी की क्षिप्रा व त्रिवेणी संगम के बाद की क्षिप्रा देखिए, खान नदी क्षिप्रा मैया पर क्या असर डाल रही है? आप खुद समझ जाएंगे। खान नदी के साथ उसकी तमाम गंदगी व रसायन भी क्षिप्रा मां की गोद में समा जाते हैं। मुझे नहीं पता कितने लोगों ने इस पर ध्यान दिया कि त्रिवेणी घाट पर नदी में मछलियां नजर नहीं आतीं। क्यों? खान के साथ जो गंदगी यहां मिलती है, वो नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को बुरी तरह बिगाड़ देती है। सहायक नदियां बड़ी नदी को समृद्ध बनाती हैं लेकिन यहां खान का संगम नदी का प्रदूषण बढ़ा रहा है। हमने अपनी नदियों की कितनी उपेक्षा की है, यह जानने के लिए इतना ही काफी है कि इंदौर के लोग कहते हैं हमारे यहां कोई नदी नहीं है। वो नहीं जानते कि क्षिप्रा भी इंदौर से अवतरित होती है। ज्यादातर लोग नहीं बता पाएंगे कि खान नदी का उद्गम कहां है? यदि इंदौर खान नदी को जिंदा करना चाहता है तो यहां पार्षदों को मिलकर वार्ड स्तरीय नदी संरक्षण समितियों का गठन कर देना चाहिए। ये समितियां जिम्मेदारी उठाएंगी कि उनके वार्ड का ड्रेनेज खान में न मिले।
नदी का क्षेत्र बताने वाले बोर्ड लगें
सरकार को खान के उद्गम पर एक सूचना बोर्ड लगाना चाहिए ताकि लोगों को पता चले कि यहां से खान निकलती है। खान जिस तालाब से पैदा हुई, उसे गहराकर संरक्षित करना चाहिए क्योंकि उस पूरे इलाके में कॉलोनियां कट रही हैं। नदी की लंबाई-चौड़ाई व प्रवाह के सूचना बोर्ड नदी के कमजोर (जहां गर्मियों में पानी कम पड़ता है) बिंदुओं पर दर्ज किए जाएं। स्पष्ट सूचना होने पर अतिक्रमणकारियों को रोका जा सकेगा। प्रशासन नदियों के उद्गम, लंबाई व क्षेत्रफल को परिभाषित कर अतिक्रमण न करने की चेतावनी भर लगा दे। उसके बाद तो हमारे किसान भाई नदी मैया को सहेजने में एड़ी चोटी का दम लगा देंगे।


http://epaper.patrika.com/24597/Indore-Patrika/09-02-2012#page/2/1

पत्रिका, इंदौर, ९  फरवरी २०१२







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